Part 2
Part 3
Part 4
सकारात्मक रहें और नकारात्मकता दूर करें।
'युद्ध की शुरुआत मनुष्य के दिमाग से होती है।’ -यूएन चार्टर।
एक व्यक्ति के दिमाग में रोजाना औसतन 50 हजार विचार आते हैं। इनमें से कुछ विचार सकारात्मक और कुछ नकारात्मक होते हैं। इनमें से 90 फीसदी विचारों का दोहराव होता रहता है। यानी, आज आए 90 फीसदी विचार कल भी आएंगे और एक दिन पहले भी आए थे। हालांकि, मनुष्य का दिमाग हमेशा परस्पर विरोधी विचारों में उलझा रहता है। यह विरोध मानव-मूल्य, आसपास का वातावरण, सवालों के जवाब या फिर जवाब से उपजे नए सवाल पर हो सकता है... 'क्या है’ और 'क्या होना चाहिए’ या कोई भावनात्मक मामला और ऐसे ही अनगिनत विरोधाभास। यह विरोधाभास असंतुलन पैदा करता है जिससे व्यक्ति अशांत हो जाता है। अशांत होने पर व्यक्ति की ऊर्जा खुद-ब-खुद नष्ट होने लगती है और कोई मकसद भी पूरा नहीं होता।
आज हम बदलाव के युग में जी रहे हैं। बाहरी दुनिया में बड़ी तेजी से बदल रही है। जब हम इससे तालमेल नहीं बिठा पाते और दुनिया में आ रहे बदलाव के मुताबिक खुद को नहीं बदल पाते तो असंतुलन की स्थिति बनने लगती है। हम तनाव के शिकार हो जाते हैं। इसीलिए हम पाते हैं कि आज कॉरपोरेट जगत का समानार्थी शब्द मनोवैज्ञानिक विकार हो गया है।
अच्छाई और अच्छे विचार हमारे भीतर ही हैं। यदि हम खुद को इन्हीं के भीतर सीमित कर दें तो हमारी रचनात्मक क्षमता बढ़ जाएगी और दिमाग असंतुलन से संतुलन की दिशा में लौट आएगा। 'क्या होना चाहिए’, यदि हम खुद को इस विचार पर केंद्रित करते हुए, 'अवांछनीय’ विचार त्याग दें तो हम संतुलन की स्थिति में लौट आते हैं। यह संपूर्णता की स्थिति है। विचारों की यह एकरूपता हमारे भीतर की असीमित रचनात्मकता को सामने लाएगी। हमें वही करना चाहिए जो 'वांछनीय’ है और 'अवांछनीय’ विचार-कर्म का त्याग करना चाहिए। मिसाल के तौर पर-यदि हम दयालु होना चाहते हैं तो हमें अहंकार त्यागना होगा। यदि हम धैर्यवान होना चाहते हैं तो गुस्सा छोडऩा होगा।
ऊपर दी गई मिसाल परंपरागत सकारात्मक सोच का पहला हिस्सा है- दयालु और धैर्यवान, लेकिन इसमें दूसरे हिस्से को नजरंदाज किया गया है। ऐसी सोच में यह माना जाता है कि नकारात्मकता का ख्याल भी नकारात्मक सोच है। लेकिन बिल्ली के आंख बंद करने से दुनिया अंधी तो नहीं जाती। हम जब नकारात्मकता को नजरंदाज करने का निर्णय लेते हें तो खुद को एक दायरे में बांध लेते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि आज हम जो भी हैं वह अपने सकारात्मक सामर्थ्य की वजह से हैं और अपनी कमियों की वजह से ऐसे नहीं हो सकते थे। आत्मनिरीक्षण एक तरह से अपना सामर्थ्य बढ़ाने और कमियां दूर करने की प्रक्रिया है। नकारात्मकता और कमियां दूर करना उतना ही महत्वपूर्ण है। जैसे अच्छी फसल के लिए किसी खेत में स्वस्थ बीज की बुवाई के साथ-साथ इसकी निराई-गुड़ाई जरूरी है।
'सकारात्मक रहें और नकारात्मकता दूर करें’, संतुलित सोच के लिए मैंने यह मंत्र खोजा है।